आचार्योंकी श्रृंखला

सयाजी ऊ बा खिन

1899-1971

विपश्यना अनुसंधान संस्थान द्वारा The Sayagyi U Ba Khin Journalसे निम्नलिखित लेख के कुछ अंश उध्दॄत किये गये है.

सयाजी ऊ बा खिन का जन्म , बर्मा की राजधानी रंगूनमें 6 मार्च, 1899 पर हुआ था.एक श्रमिकोंके जिले में रहने वाले नम्र परिवार के दो बच्चों मे यह सबसे छोटा था.स्कूल में उन्होने  एक उल्लेखनीय क्षमतासे स्मृति से अपने पाठ के लिए,तथा कवर से कवर तक उनकी अंग्रेजी व्याकरण सीखकर ध्यानमे रखनेके लिये खुदको एक प्रतिभाशाली छात्र साबित कर दिया,. 1917 में, उन्होने अंतिम हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की, एक स्वर्ण पदक के साथ ही साथ एक कॉलेज छात्रवृत्ति जीत ली. हालांकि, परिवार के दबावमे अपनी औपचारिक शिक्षा बंद करने के लिए और पैसा कमाना शुरू करने के लिए उसे मजबूर कर दिया. उनकी पहली नौकरी “सूर्य” नामक(The Sun) एक बर्मी अखबार मे हुई, लेकिन कुछ समय बाद उन्होने बर्मा के महालेखाकार कार्यालय में एक क्लर्क के रूप में काम करना शुरू किया.1937, मे,जब बर्माको भारत से अलग कर दिया गया तब,उनको विशेष कार्यालय अधीक्षक नियुक्त किया गया.

1 जनवरी1937 मे, सयाजीने पहली बार ध्यान की कोशिश की. साया थेजी -जो एक धनी किसान और ध्यान गुरु थे उनका एक शिष्य यू बा खिन के पास अक्सर आते थे और आनापान ध्यान को विस्तार से बताते थे. जब सयाजी ने यह कोशिश की,तो उनको अच्छी एकाग्रताका अनुभव मिला.इससे वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक पूर्ण शिविर करनेका निर्धार किया. एक सप्ताह बाद, उन्होने दस दिनकी अनुपस्थिति के लिये आवेदन दिया और साया थेजी के शिक्षण केंद्र के लिए निकल पड़े. उसी रात, यू बा खिन और एक अन्य बर्मी छात्र, जो लेडी सयाडॉ का शिष्य था, उन्होंने साया थेजी से आनापान का निर्देश प्राप्त किया. दो शिष्योने तेजी से प्रगती की, और अगले दिन उनको विपश्यना दी गयी. सयाजीने पहले दस दिवसीय शिविर के दौरान अच्छी तरह से प्रगति की. जब भी वह रंगून आते थे.तब इन लगातार दौरों के दौरान आचार्य साया थेजी से उनके केंद्रमे मिलकर केंद्रमे अपना अभ्यास उन्होंने जारी रखा.

सयाजी की सरकारी सेवा और छव्वीस साल जारी रही. जिस दिन बर्मा ने स्वतंत्रता प्राप्त की उस दिन 4 जनवरी, 1948 को महालेखाकार बन गये. दो दशकों के लिए, वह सरकार में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे, बहुतसे समय सबसे दो या दो से अधिक एक विभाग के प्रमुख के बराबर पदों पर कार्यरत रहे,एक समय वह तीन साल के लिए एक साथ तीन अलग-अलग विभागों के प्रमुख के रूप में, और एक अन्य अवसर पर एक वर्ष के लिए चार विभागों मे सेवा दी. जब उनको 1956 में राज्य कृषि विपणन बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, बर्मा सरकारने थ्रय सिथू, यह एक उच्च मानद उपाधि के खिताब देकर उनको सम्मानित किया. केवल जीवन के आखिरके चार साल सयाजी ध्यान शिक्षण के लिए विशेष रूप से समर्पित थे. समय के बाकी समय ध्यान की कुशलता के साथ सरकारी सेवा के प्रति समर्पित रहे.

उन्होंने 1950 में महालेखाकार कार्यालय मे विपश्यना एसोसिएशन स्थापित किया, जहां सामान्य लोग, मुख्यतः कार्यालय के कर्मचारी विपश्यना सीखने आते थे. 1952 में, रंगून मे प्रसिद्ध श्वेडागॉन पगोडा के दो मील की दूरी पर उत्तर दिशामें इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर (I.M.C.)खोला गया था.यहाँ कई बर्मी और विदेशी छात्रों को सयाजीसे धम्म में शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला.

सयाजी छठा संगयाना (छठे सस्वर पाठ) जिसको छठे बौद्ध परिषद के लिए जाना जाता है, इसको रंगून में 1954-56 में आयोजित किया गया था, जिसकी योजना बनाने में सयाजी सक्रिय थे.1950 मे सयाजी दो संगठनों के संस्थापक सदस्य थे, जिनका बाद में बर्मा बुद्ध सासना परिषद के संघ (U.B.S.C.), महान परिषद के लिए मुख्य नियोजन करनेवाली संस्था मे विलय कर दिया गया. यू बा खिन ने U.B.S.C. के एक कार्यकारी सदस्य के रूप में तथा पटिपत्ती (patipatti) समिति के अध्यक्ष (ध्यान का अभ्यास) और परिषद के मानद लेखा परीक्षक के रूप मे सेवा दी. वहाँ एक व्यापक निर्माण कार्यक्रम के अंतर्गत 170 एकड़ में फैला आवास, भोजन क्षेत्रों और रसोई घर, एक अस्पताल, पुस्तकालय, संग्रहालय, चार हॉस्टल, और प्रशासनिक भवनों प्रदान किये गये. पूरे उद्यम का केन्द्रबिन्दु महापसनगुहा (महान गुफा), जो एक विशाल हॉल है, जहां बर्मा, श्रीलंका, थाईलैंड, भारत, कंबोडिया और लाओस से लगभग पांच हजार भिक्षु, तिपिटक (बौद्ध धर्म ग्रंथों) को सुनाने, शुद्ध करना, संपादित और प्रकाशित करनेके लिये इकठ्ठा हुए. समूहों में काम कर रहे भिक्षुओने , प्रकाशन के लिए पाली ग्रंथोंकी बर्मी, श्रीलंका, थाई, कम्बोडियन संस्करणों और लंदन में पालीपाठ सोसायटी के रोमन लिपि संस्करण की तुलना से तैयार किया. दस्तखत किया हुआ और मंजूरी दीये हुए ग्रंथोंका महान गुफा में पठन हुआ. दस से पंद्रह हजार तक पुरुषों और महिलाए भिक्षुओं पठन सुनने के लिए आते थे. सयाजी 1967 तक विभिन्न पदों पर UBSC के साथ सक्रिय रहे. इस तरह से उन्होने एक आम आदमी और साथ सरकारी अधिकारी के तौरपर अपनी जिम्मेदारियों को संभलते हुए मजबुत धम्म संकल्पसे बुध्द की शिक्षा का प्रसार किया. इसके अलावा प्रमुख सार्वजनिक सेवा हेतु करके, उन्होने अपने केंद्र पर नियमित रूप से विपश्यना सिखाना जारी रखा. सयाजी अंत में 1967 में सरकारी सेवा से उत्कृष्ट कैरियर देकर सेवानिवृत्त हुए. जनवरी, 1971 में अपनी मृत्यु तक, वह I.M.C. में रुके रहे, विपश्यना अध्यापन करते रहे.

क्योंकि उनकी अत्यधिक मांग सरकार कर्तव्यों की थी, सयाजी छात्रों की केवल एक छोटी संख्या को सिखा सकते थे. उनकी बर्मी छात्रों में से कई उनकी सरकारी काम के साथ जुड़े थे. कई भारतीय छात्र गोयंन्काजी द्वारा परीचित कराये गये. पश्चिमी देशोंमेसे जो छठे परिषद के लिए आये थे, उनमेसे कुछ लोगोंको ध्यान की शिक्षा के लिए सयाजीसे परिचित कराया गया क्योंकि उस समय वहाँ अंग्रेजी में अस्खलित संभाषण करनेवाला विपश्यना का कोई अन्य आचार्य नही था. सयाजी के विदेशी साधक संख्या भले ही कम थी लेकिन विविध प्रकार की थी, जिसमे प्रमुख पश्चिमी बौद्ध, शिक्षाविदों, और रंगून में राजनयिक समुदाय के सदस्य भी थे.समय-समय पर, सयाजी को धम्म के विषय पर बर्मा में विदेशी दर्शकों को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया जाता था. ये व्याख्यान बुकलेट के रूप में प्रकाशित किए गए और इसमे बौद्ध धर्म क्या है(What Buddhism Is) और बौद्ध ध्यान का वास्तविक मूल्यों(The Real Values of True Buddhist Meditation)  शामिल है

गोयन्काजी एक शिविर का आयोजन भारत में कर रहे थे, तब उनके आचार्य की मृत्यू की खबर उनके पास पहुंच गयी. उन्होंने बदलेमे I.M.C.को एक तार भेज दी गयी जिसमे प्रसिद्ध पाली कविता शामिल हैं:

अनिच्च वत संखारा,
उप्पादवय - धम्मिनो,
उप्पज्जित्वा निरुज्झन्ती,
तेसं वूपसमो सुखो .

इस कविता का अंग्रेजी अनुवाद है:

अनस्थिर वास्तव में संमिश्र बातें है,
स्वभावसे उत्पन्न और नष्ट होनेवाली.
अगर वे उत्पन्न हुई और बुझा दी गयी,
तो उनका उन्मूलन खुशी लाता है.

एक साल बाद, अपने आचार्य के लिए एक श्रद्धांजलि में, गोयन्काजी ने लिखा: "यहां तक उनके गुजरने के एक साल बाद भी, शिविरों की निरंतर सफलता देखते हुए, मैं अधिक से अधिक आश्वस्त हू कि यह उनकी मैत्री ही जो मुझे सब प्रेरणा दे रही है और कई लोगों की सेवा करने के लिए ताकत दे रही है ....स्पष्टतः धम्म का बल बहुत अतुलनीय है. सयाजी की आकांक्षाओं को पूरा किया जा रहा है. बुद्ध की शिक्षाओंको,इन सभी सदियोंमे सुरक्षित रखी गयी है,अभी भी अभ्यास किया जा रहा है, यहाँ और अब भी परिणाम मिलते है."

सयाजी ऊ बा खिन पर अतिरिक्त जानकारी Pariyatti (परियत्ती) से उपलब्ध है