नववे दिनका प्रवचन

दैनिक जीवन में तकनीक का प्रयोग - दस पारमिताए

नौ दिन समाप्त हो गये. कैसे दैनिक जीवन में इस तकनीक का उपयोग करे इसके बारे में चर्चा करने के लिए अब का समय है. यह अत्यंत महत्व का विषय है. धम्म जीवन जीने की कला है. अगर आप दैनिक जीवन में इसका उपयोग नहीं कर सकते हैं, तो एक शिविर करने के लिए आना कोई एक कर्मकांड या समारोह करना जैसाही है.

प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में अनचाही स्थितियों का सामना करना पड़ता है. जब भी कुछ अनचाही होता है, कोइएक मन की समता खो देता है, और नकारात्मकता पैदा करने शुरू करता है. और जब भी नकारात्मकता मन में उठती है, कोइएक दुःखी हो जाता है. नकारात्मकता कैसे पैदा न हो, तनाव कैसे पैदा न हो? कैसे कोइएक शांति से और मिलजुलकर रहे?

जिन ज्ञानी लोगोने अपने भीतर के मन और शरीर की सच्चाई की खोज शुरू कीया, उन्हे इस समस्या का हल मिल गया: जब किसी भी कारणसे मनमे नकारात्मकता आती है, एक ने कहीं ओर ध्यान देना चाहिए. उदाहरण के लिए, कोइ उठ जाता है, कुछ पानी पीता हैं, गिनती शुरू करता है, या एक देवता या पुण्य व्यक्ति जिस की ओर भक्ति है उनके नाम पढ़ना शुरू करता हैं. ध्यान दुसरी जगह हटाने के बाद कोइएक नकारात्मकता से बाहर आयेगा.

एक व्यावहारिक समाधान. लेकिन भीतर के सत्य के अन्य खोजकर्ता परम सत्य के लिए, सच्चाई के गहरे स्तर तक चले गये. इन प्रबुद्ध व्यक्तियों को एहसास हुआ कि ध्यान हटाने से सचेत स्तर पर शांति और सद्भाव की एक परत बनती है, लेकिन एक नकारात्मकता जो उत्पन्न हो गई है वह समाप्त नहीं हुई. किसीएक ने इसे सिर्फ दबाया है. बेहोशी के स्तर पर, इसकी वृध्दि होती है और बल बढना शुरु रहता है. अभी या बाद में, नकारात्मकता का यह सोया हुआ ज्वालामुखी फूटेगा और मन पे सवार होगा. जब तक बेहोशी के स्तर पर भी नकारात्मकता रहेगी, तबतक समाधान केवल आंशिक, क्षणिक होगा.

संपूर्ण प्रबुद्ध व्यक्ति सच्चाई का समाधान पाता है: समस्या से दूर न भागे; उसे सामना करे. जो कुछ भी दुषितता मन में उठती है उसका निरिक्षण करे. देखनेसे इसे दबा नहीं रहे हो, न ही इसे हानिकारक मौखिक या शारीरिक क्रिया व्यक्त करने के लिए खुला लाइसेंस दे रहे हो. इन दो अंतिम सीमाओं के बीच मध्यम मार्ग रहता हैः केवल अवलोकन. जब कोइ यह निरीक्षण करना शुरू करता है, नकारात्मकता अपना बल खो देता है और मन पर काबू करनेके पहले नष्ट होता है. इतना ही नहीं, लेकिन उस प्रकार का पुराने दुषितता का कुछ संग्रह भी निकल जायेगा. जब भी कोई मलिनता सचेत स्तर पर शुरू होती है, मलिनता का उस प्रकार का एक का पुराना संग्रह बेहोशी के स्तर से उपर उठता है, वर्तमान मलिनता के साथ जुड जाता है और बढना शुरू होता है. अगर कोइएक सिर्फ निरिक्षण करता है तो केवल वर्तमान दुषितता ही नही तो पुराने संग्रह का कुछ हिस्सा भी निकल जाएगा. इस तरह से, धीरे-धीरे सब दुषितता(विकार) नष्ट होती है, और एक दुःख से मुक्त हो जाता है.

लेकिन एक साधारण व्यक्ति के लिए, यह मानसिक मलिनता का निरीक्षण करना आसान नहीं है. किसीएक को मालूम ही नहीं कब यह शुरू हुआ और कैसे इसने मन पर काबू किया. जब तक वह सचेत स्तर तक पहुँचता है, इतना मजबूत हो जाता है कि प्रतिक्रिया के बिना निरीक्षण कर नही सकते. अगर आप ऐसा करना चाहे तो भी, मनका यह अमूर्त विकारका निरिक्षण करना बहुत मुश्किल है --अमूर्त क्रोध, भय, या वासना. इसके बजाय, किसि एकका ध्यान दुषितता के बाह्य प्रेरणा तरफ जाता है, जो केवल बढावा देनेके लिये एक कारण होगा.

हालांकि, प्रबुद्ध व्यक्तियों ने खोज किया कि जब भी एक मलिनता मन में उठती है, उसी समय दो घटनाए भौतिक स्तर पर शुरू हो जाती है: सांस अपनी स्वाभाविकता खो देता है, और शरीर मे एक जैव रासायनिक प्रक्रिया, संवेदना शुरु हो जाती है. एक व्यावहारिक समाधान मिल गया. यह मन के अमूर्त विकारोंका निरीक्षण करना बहुत मुश्किल है, लेकिन प्रशिक्षण के बाद कोइभी जल्द ही सास और संवेदना जो एक शारीरिक प्रकटन हैं, उसका निरीक्षण करना सिखता है. विकारोंका भौतिक रुप में निरिक्षण करके कोइएक उसे उपर आने देता है और कोई भी नुकसान किये बिना नष्ट होने देता है. कोइएक विकारों से मुक्त हो जाता है.

इस तकनीक में प्रभुत्व हासिल करने में समय लगता है, लेकिन कोइएक जैसे ही इसका अभ्यास करता है, धीरे-धीरे अधिक से अधिक समय बाहरी स्थितियों में जो पहले नकारात्मकता के साथ प्रतिक्रिया करता था, अब संतुलित रह सकता है. यहां तक की अगर प्रतिक्रिया करता है, तब भी प्रतिक्रिया इतनी तीव्र या लंबे समय तक नही होगी जो पहले होती थी. एक समय ऐसा आएगा जब सबसे उत्तेजक स्थिति में, कोइएक श्वसन और संवेदना द्वारा दिए गए इशारे पर ध्यान देने के लिए सक्षम हो जाएगा, और कुछ क्षणोंके लिये भी उन्हें देखना शुरु करेगा. आत्म-अवलोकन के इन कुछ क्षणों से बाह्य प्रेरणा और एक की प्रतिक्रिया इन दोनो के बीच एक आघात अवशोषक के रूप में कार्य करेंगे. अंधी प्रतिक्रिया करनेके बजाय, मन संतुलित रहता है, और अपने आप के तथा दूसरों के लिए उपयोगी ऐसी सकारात्मक कारवाई करनेके लिये कोइएक सक्षम हो जाता है.

आपने अपने भीतर संवेदना को देख कर अपने विकारोंका उन्मूलन और मन की आदत पैटर्न बदल करने की दिशा में पहला कदम उठाया है.

जन्म के समय से, किसिएक को हमेशा बाहर देखने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. कोइ कभी भी अपने आप को नही देखता है, और इसलिए कोइएक समस्याओं की गहराई तक जानेके लिए काबिल नहीं रहता है. इसके बजाय वह दुःख के कारण बाहर देखता है, हमेशा वह अपने दुःख के लिए दूसरों को दोष देता है. एक घटनाको केवल एक ही कोनेसे देखता है, वह एक आंशिक दृश्य है, जो विकृत होना स्वाभाविक है; और तब भी इस दृष्य को पूर्ण सच के रुपमे स्वीकार करता है. इस अधूरी जानकारी के साथ किया गया कोइ भी निर्णय केवल अपने आप को और दूसरों के लिए हानिकारक होगा. सच्चाई की समग्रता देखने के लिए, किसिको इसे एक से अधिक कोने से देखना चाहिए. यह विपश्यना के अभ्यास के द्वारा कोइ भी सीखता हैः सच्चाई न केवल बाहरी लेकिन भीतर की भी.

केवल एक कोनेसे देखनेसे, कोइएक कल्पना करता है की उसका दुख अन्य लोगों के कारण से, बाहरी परिस्थिती के वजहसे उत्त्पन्न हुआ  है. इसलिये कोइएक अपनी सारी ऊर्जा दूसरों को बदलने, बाहरी स्थिति को बदलने के  लिये लगा देता है. वास्तव में यह एक व्यर्थ प्रयास है. जो कोइ भीतर ही भीतर सच्चाई को देखना सीखता है उसे जल्द ही पता चलता है, की वह अपने दुःख या सुख के लिए पूरी तरह से खुद जिम्मेदार है. उदाहरण के लिए, कोइ व्यक्ति को अन्य कोइ अपशब्द कहता है, और वह व्यक्ति दुखी हो जाता है. उसे दुःखी बनानेके लिये जिस व्यक्तिने अपशब्द बोला है उसीको वह दोषी मानता हैं. असल में अपशब्द सुननेवाली व्यक्ति खुद अपनेही मन को अशुद्ध् बनाकर अपने लिये दुःख का पहाड खडा करती है. जिस व्यक्तिने अपशब्द बोला था उसके प्रती वह प्रतिक्रिया देकर अपने लिये तब दुख उत्पन्न करता है जब वो अपना मन दुषित करना शुरु करता है. प्रत्येक व्यक्ति अपने दुःख के लिये खुद जिम्मेवार है, दुसरा कोइ भी नही. जब कोइएक इस सत्य को अनुभव करता है, तो दूसरों की गलती खोजने का उसका पागलपन दूर हो जाता है

कोइएक किसके प्रती प्रतिक्रिया क्या करता है? उसने बनाई हुई अपनी छबि, बाह्य सच्चाई नही. जब एक किसी को देखता है, उस व्यक्ति की छबि उसने बनाये हुए एक पुराने स्थितीके रंग की है. पुराना (saṅkhārā) संस्कार का प्रभाव किसी भी नई स्थिति के समझ पे पडता है. बारी में, यह स्थापित धारणा की वजह से, शारीरिक संवेदना सुखद या दुखद हो जाती है. और संवेदना के प्रकार के अनुसार, कोइएक नयी प्रतिक्रिया उत्पन्न करता है. इन मे की हर प्रक्रिया पुराने (saṅkhārā) संस्कार से प्रभावित है. लेकिन अगर कोइ एक संवेदना के प्रति सजगता और समता बनाए रखेगा, तब अंधी प्रतिक्रिया करनेकी आदत कमजोर हो जाती है, और कोइएक सच्चाई को, जैसी है वैसेही देखना सीखता है.

जब एक अलग कोनेसे चीजों को देखने कि क्षमता जगाता है, तो जब भी कोइ गाली या दुर्व्यवहार करता है, समझ उठती है की यह व्यक्ति दुःखी है इसलिये ऐसा दुर्व्यवहार कर रही है. इस समझ के साथ, कोइएक नकारात्मकता के साथ प्रतिक्रिया नहीं कर सकता, लेकिन उस दुःखी व्यक्ति के लिये केवल प्रेम और करुणा महसूस होगी, जैसे ही, एक माँ एक बीमार बच्चे के लिए करती है. उस व्यक्ति को अपने दुःख से बाहर आने के लिये मदद करने की इच्छा उत्पन्न होती है. इस प्रकार कोइएक शांतिपूर्ण और सुखी रहता है, और दूसरों को भी शांतिपूर्ण और सुखी बनने के लिए मदद करता है. जीने की कला का अभ्यास करना, याने, मानसिक दोष निर्मूलन करना और अपनी भलाई के लिए और दूसरों की भलाई के लिए अच्छे गुण अपनाना यह धम्म का उद्देश्य है.

दस अच्छे मानसिक गुण होते हैं - parami पुण्य - कि जिसमे एक को अंतिम लक्ष्य तक पहुँचने के लिए परिशुध्द होना. लक्ष्य पुर्ण अहंभाव विरहित स्थिती होना. यह दस paramiपुण्य होते हैं जिससे धीरे-धीरे, अहंभाव पिघलता है, और उसिको द्वारा किसीएक को मुक्ति के करीब ले जाता है. किसिको भी विपश्यना के शिविर मे इन सभी दस गुणों को बढाने का अवसर मिलता है.

पहला parami पुण्य है nekkhamma --त्याग. जो कोइ एक संन्यासी या एक नन हो जाता है वह गृहस्थ जीवन का त्याग और निजी संपत्ति के बिना रहता है, यहां तक कि अपने दैनिक भोजन के लिए भीक्षा माँगनी पडती है. यह सब अहंकार भंग करने के उद्देश्य से किया जाता है. सामान्य व्यक्ति यह गुणवत्ता को कैसे हासिल कर सकती है? इस तरह के एक शिविर में, ऐसा करने का अवसर मिलता है, क्यो की कोइएक यहाँ दूसरों के दान पर रहता है. जो कुछ भी भोजन, आवास, या अन्य सुविधाओं के रूप में मिलता है उसे स्विकार करके, कोइएक धीरे-धीरे त्याग की गुणवत्ता बढाता है.जो भी यहाँ प्राप्त करता है, कोइएक केवल अपनी भलाई के लिए नही, लेकिन अज्ञात व्यक्ति जिन्होने यह दान दिया है उस की भलाई के लिए भी कढाइसे काम करके मनको शुध्द बनानेके लिये, इसका सबसे अच्छा उपयोग करता है.

अगला (parami) पुण्य है (sīla) शील- नैतिकता. कोइएक, सभी समय, शिविर के दौरान और दैनिक जीवन इन दोनो में भी इस पांच शीलों का पालन करके इस पारमी को बढानेका प्रयत्न करता है. सांसारिक जीवन मे कई बाधाएं आती हैं जो (sīla) शीलोंका अभ्यास करना मुश्किल करती हैं. हालांकि, ध्यान के शिविर में यहाँ, व्यस्त कार्यक्रम और अनुशासन की वजह से, शीलों को तोड़ने का कोई अवसर मिलता नहीं. केवल बात करनेसे सदाचार का कड़ाई से पालन करनेमे किसिको भी विचलित होनेकी संभावना रहती है. इस कारण से शिविर मे पहले नौ दिनों के लिए मौन का व्रत लेनेकी प्रतिज्ञा कोईएक करता है. इस तरह से, कम से कम शिविर की अवधि के भीतर, कोइएक (sīla) शीलका पूरी तरहसे पालन करता है.

एक और( parami) पारमी  है (vīriya)वीर्य - प्रयास. उदाहरण के लिये दैनिक जीवन में कोइएक आजीविका के लिए कमानेका प्रयास करता है. यहाँ, तथापि, प्रयास सजगता और समता मे रहकर मन को शुद्ध करना है. यह सही प्रयास है, जो मुक्ति की ओर ले जाता है.

एक और (parami)पुण्य है (paññā)प्रज्ञा ---ज्ञान. बाहर की दुनिया में, एक को ज्ञान हो सकता है, लेकिन यह ज्ञान किताबें पढ़ने से या दूसरों को सुननेसे, या केवल बौद्धिक समझदारीसे हो सकता है. सच्चे ज्ञान की (parami)पुण्य अपने भीतर की समझदारी, ध्यान के अपने खुदके अनुभव से तयार होती है. सीधे आत्म-अवलोकनसे कोइएक अनित्यता,दुख, और अहंकार विहिनता के तथ्यों का एहसास करता है. सच्चाई के इस प्रत्यक्ष अनुभव से एक दुख से बाहर आता है.

एक और (parami)पुण्य है (khantī)--- सहिष्णुता. इस तरह के शिविर में, काम करते और साथ मे रहते वक्त किसी को अन्य व्यक्ति के कृती से परेशानी और चिढचिढाहट लग सकती है. लेकिन जल्द ही उसे एहसास होता है कि यह व्यक्ति जो अशांति पैदा कर रही है वह क्या कर रही है इसमे अज्ञान है, या तो बीमार व्यक्ति है. अब क्षोभ दूर हो जाता है, और उस व्यक्ति के प्रति केवल प्रेम और करुणा मालूम होती है. किसीएक ने सहिष्णुता के गुण को बढावा देना शुरू कर दिया है.

एक और parami पुण्य है sacca--सत्य(सच). sacca सत्य का अभ्यास करके कोइएक वाणी से सत्यनिष्ठता बनाए रखने का वचन देता है. हालांकि, sacca सत्यका गहरी भावसे अभ्यास किया जाना चाहिए.मार्ग पर का हर कदम स्थूल से, प्रकट सच, प्रकटसे सूक्ष्म सत्य, और परम सत्य के लिये होना चाहिये . कल्पना के लिए कोई जगह नहीं है. किसीएक को हमेशा वर्तमान समय में अनुभव होनेवाली सच्चाई के साथ रहना चाहिये,

एक और(parami) पुण्य है (adhiṭṭhāna) अधिष्ठान -- दृढ संकल्प. जब कोइएक विपश्यना शिविर शुरू करता है, तब वह एक दृढ़ संकल्प करता है कि शिविर की पूरी अवधि के लिए रहेंगे. कोइएक नीतिवचन, मौन का शासन, शिविर के सभी अनुशासन का पालन करने का निश्चय करता है. विपश्यना विद्या के परिचय के बाद, अपने आंख, हाथ या पैर खोले बिना प्रत्येक सामुहिक साधनामे पूरे एक घंटे के लिए ध्यान करने का दृढ संकल्प करता है. कुछ समय के बाद इस मार्ग पर ऐसी स्थिती आयेगी की यह (parami) पुण्य बहुत महत्वपूर्ण होगी; जब अंतिम लक्ष्य के करीब आ रहे है, किसिको भी मुक्ति तक पहुँचने तक विराम के बिना बैठने के लिए तैयार होना चाहिए. इस प्रयोजन के लिए दृढ संकल्प को बढावा देना आवश्यक है.

एक और (parami)पुण्य है (mettā) मैत्री-- शुद्ध, नि:स्वार्थ प्रेम. पहले किसिने दूसरों के लिए प्यार और सद्भावना महसूस करने की कोशिश की, लेकिन यह सजगता केवल मन के उपरी स्तरपर थी. बेहोशी के स्तरपर पुराने तनाव शुरु ही रहते है. जब पूरा मन शुद्ध होता है, तब गहराई से कोइएक दूसरों की खुशी के लिए इच्छा कर सकता हैं. यह असली प्रेम है, जो दूसरों की मदद करता है और अपने आप को भी मदद करता है.

अभी एक और (parami)पुण्य है (upekkhā) उपेक्षा-- समता. कोइएक स्थूल, अप्रिय संवेदना या शरीरके मुर्च्छित भागोंका अनुभव होते समय ही सिर्फ नही लेकिन सूक्ष्म, सुखद, संवेदना का सामना करने मे मनकी समता रखनेको सिखता है. हर स्थिति में कोइएक समझता है की उस क्षण का अनुभव अनित्य है, नष्ट होनेवालाही है. इस समझदारीसे वह अलिप्त, समतामे रहता है.

आखिरी (parami पुण्य है (dāna) दान-- परोपकार बुध्दी, दान. आम व्यक्ति के लिए, यह धम्म का पहला आवश्यक कदम है. एक व्यक्ति को अपने और परिवार की जिंदगी के लिए सही आजीविका से पैसे कमाने की जिम्मेदारी है. लेकिन अगर एक पैसा कमाता है उस पैसे के प्रति लगाव उत्पन्न करता है, तब वह अहंकार बढाता है. इसी कारण से, कोइएक जो कमाता है उसिका एक हिस्सा दूसरों की भलाई के लिए भी दिया जाना चाहिए. अगर कोइएक ऐसा करता है, तो अहंकार को बढावा नहीं होगा, क्योंकि वह समझता है कि वह जो कमाता है सिर्फ उसकेही फायदे के लिए नही बल्कि दूसरों के लाभ के लिए भी कमाता है. किसी भी तरहसे दुसरोंको मदत करनेकी इच्छा उसिमे उत्पन्न होती है. और कोइएक महसूस करता है की उन्हें दुख से बाहर आनेका रास्ता बताने में मदद करने जैसी और कोई बडी मदद नहीं हो सकती.

इस तरह के एक शिविरमें, किसिएक को यह parami पुण्यको बढाने के लिए एक अद्भुत सुअवसर मिलता है. जो भी यहाँ मिलता है वह दुसरे अन्य व्यक्तिद्वारा दान रुप मे प्राप्त हुआ है; यहाँ सिखानेके लिए कमरा और दैनिक भोजन, और निश्चित ही किसी के लिए भी कोई शुल्क नहीं है. बदले में, दुसरे के लाभ के लिए कोइएक दान दे सकता है. राशि किसीएक के कमाई के अनुसार होती है.स्वाभाविक रूप से एक धनी व्यक्ति को अधिक दान देने की इच्छा होगी, लेकिन फिर भी छोटे से छोटा दान, उचित इच्छा के साथ देनेसे यह paramiपुण्य बढने में बहुत मूल्यवान है. बदले में कुछ भी उम्मीद के बिना, कोइएक देता है ताकि दूसरे धम्म के लाभों का अनुभव कर सके और वह दुःख से बाहर आ सके.

यहाँ आप को सभी दस parami पुण्यको बढानेका अवसर मिलता है. इन सभी अच्छे गुणोंमे जब आप परिशुध्द होंगे तब आप अंतिम लक्ष्यतक पहुंच जाएंगे.

उनको थोडा थोडा बढानेके लिये अभ्यास शुरु रखिये. धम्म के पथ पर प्रगति करते रहे, न केवल अपने लाभ के लिए और मुक्ति के लिए, बल्कि कइओंके लाभ और मुक्ति के लिए भी.

सभी दुखी प्राणियों को शुद्ध धम्म मिल जाए, और मुक्त हो.

सबका मंगल हो!